महफ़िल

मैने कहां जिंदगी से

कुछ पल चाहिए सुकून के,

जिंदगी ने कहा, 'पूरी शाम तुम्हारी है जी लो इसे इत्मीनान से..' 1

शाम बड़े मस्त अंदाज में भटक रही थी ,

कहीं गुफ्तगू , कही गुटर्र गु और

कही खेल कूद में खुद को हँसा रही थी ... 2

मैंने कहा , ' आजकल आप मिलती नहीं बारबार ?'

शाम हँसकर बोली, ' आपने महफ़िल बदली; और हमें बताया भी नहीं!” 3

बातें चल ही रही थी

के इतने में फोन बजा

मैंने पूछा ,"कौन?"

जवाब आया , "जिम्मेदारियां है , एक घंटेमें आएंगे तैयार रहना" 4

खैर फिर मैंने भी बोला शाम से ,

"यूँही मिलते रहना बार बार हमसे.... "

शाम बोली,

"जरा रुकिए जनाब, मेरे लिए हजारो तरस रहे है आपके जैसे.... " 5

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